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Monday, December 22, 2008

राष्ट्रभक्ती ले हृदय में


राष्ट्रभक्ती ले हृदय में हो खडा यदी देश सारा
संकटों पर मात कर यह राष्ट्र विजयी हो हमारा ।।धृ।।

क्या कभी किसने सुना है, सूर्य छिपता तिमीर भय से
क्या कभी सरिता रूकी है, बांध से वन पर्वतोंसे
जो न रूकते मार्ग चलते, चीर कर सब संकटोंको
वरण करती कीर्ती उनका, तोडकर सब असूर दल को
ध्येय मंदीर के पथीक को, कंटकों का ही सहारा ।।1।।

हम न रूकने को चले है, सूर्य के यदि पुत्र है तो
हम न हटने को बढे है, सरित की यदी प्रेरणा तो
चरण अंगद ने रखा है, आ उसे कोई हटा दे
दहकता ज्वालामुखी यह आ उसे कोई बुझा दे
मृत्यू की पीकर सुधा हम चल पडेंगे ले दुधारा ।।2।।

ज्ञान के विज्ञान के भी, क्षेत्र में हम बढ पडेंगे
नील नभ के रूप के नव, अर्थ भी हम कर सकेंगे
भोग के वातावरण में, त्याग का संदेश देंगे
त्रास के घन बादलोंसे, सौख्यकी वर्षा करेंगे
स्वप्न यह साकार करने, संघटित हो हिंदू सारा ।।3।।

विजय की यदि प्रेरणा ले, चल पडेंगे हम सभी
संकटोंके दल यहां से, भाग जाएंगे सभी
संघटन के सूत्र मे हम, हृदय जोडेंगे तभी
मातृभूको हम सजाएँ, वैभवोंसे हम सभी
परम वैभव प्राप्त करने, संचरित हो केंद्र धारा ।।4।।

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