12 जनवरी 2013
से भारत के प्रेरणापुरुष स्वामी स्वामी विवेकानंद जयंती के सार्ध शती
समारोह वर्ष का प्रारंभ हो रहा है। इस समारोह के पूर्वतयारी के लिए
कन्याकुमारी के विवेकान्द केंद्र मुख्यालय - विवेकानंदपुरम में भारत जागो ! विश्व जगाओ !! महाशिबिर का आयोजन हुआ। इस शिबिर का वृतांत ...
स्थल - कन्याकुमारी।
उत्तर भारत के 18 प्रान्तों से 676 युवक युवती सहभागी।
शिबिर दायित्ववाली चमू - 230
शिबिर कालावधी - 12 अक्तूबर से 15 अक्तूबर
12 अक्तूबर 2012
उद्घाटन सत्र -
मा। किशोरजी, सार्ध शती समारोह के अखिल भारतीय समन्वयक
भारत जागो ! विश्व जगाओ !! इस महाशिबिर में स्वामीजी के विचारोंसे प्रेरित होकर हम निश्चित उद्देश से पधारे है। भारत विश्व का एक प्राचीन देश है। यह विश्व का सबसे युवा देश भी है। काफी बड़ा युवा धन इस देश को प्राप्त है। परन्तु देश की वर्तमान स्थितियां अस्वस्थ करती है। अतीत में इस देश ने अनेक संकटो का सामना किया। काफी समस्याओंसे देश संघर्षरत है। स्वतंत्रता के पश्चात् शिक्षा के माध्यम से जो सांस्कृतिक जुड़ाव होना चाहिए था, जो अखंडता व एकता प्रस्थापित होनी चाहिए थी वह नहीं हुआ। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे समय में इस देश को कठिन स्थितियोंसे बहार निकालकर फिरसे वैभवपूर्ण स्थानपर स्थापित करना आवश्यक है। जगद्गुरु भारत स्वामी विवेकनन्दजी का स्वप्न था। युवा पीढ़ीही इस स्वप्न को साकार करेगी ऐसा विश्वास उन्हें था। इसलिए युवओंके जागृती हेतु इस संकल्प महाशिबिर का कन्याकुमारी में आयोजन किया है। यह वह स्थान है जहाँ स्वामीजी को अपने जीवित कार्य का साक्षात्कार हुआ था।
स्वामी विवेकानंद के राष्ट्र जागरण करनेवाले विचार घर घर पहुँचाने के लिए एक बृहद योजना बनाई गयी है। इसके तहत देश के 4 लाख गांवों में संपर्क किया जायेगा। 4 करोड़ घरों तक संपर्क और करीब 1 लाख से अधिक स्थानों पर सामूहिक सूर्यनमस्कार, 3 लाख जगहों पर शोभा यात्रा आदि उपक्रमों का आयोजन होगा।
मा। बालकृष्णनजी, अखिल भारतीय उपाध्यक्ष, विवेकानंद केंद्र
देवी पार्वती, स्वामी विवेकानंद और विवेकानंद केंद्र के निर्माता मा। एकनाथजीकी तपोभूमि कन्याकुमारी में आयोजित इस महाशिबिर में हम विभिन्न प्रान्तों से एकता की अभिव्यक्ति के लिए एकत्र आए है। अपने जीवन उद्देश को समझने के लिए आये है। उस उद्देश को कैसे पूर्ण करना है यह जानने के लिए आये है। इस संकल्प शिबिर का उद्देश है की सम्पूर्ण भारतीय युवा पीढ़ी में एक नवचेतना जागृत करना। इस दृष्टी से इस शिबिर का विशेष महत्व है। यह शिबिर याने अपने जीवन का एक टर्निंग पोईन्ट है। अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए व जीवन की दिशा सुनिश्चित करने के लिए निश्चित रूप से इस शिबिर का बड़ा योगदान होगा। सम्पूर्ण भारत परिभ्रमण करके स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी आये। कन्याकुमारी में उन्होंने माँ पार्वती के चरणों में प्रार्थना की और अपने जीवन के उद्देश का साक्षात्कार कर लिया। माँ का कार्य याने भारत माता का कार्य इस बात को उन्होंने समझ लिया। सम्पूर्ण विश्व को जगाने के लिए उन्होंने माँ पार्वती से शक्ति प्राप्त की। उन्हें माँ पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उसी प्रेरणा से सागर में स्थित श्रीपाद शिलापर 3 दिन और 3 रात्रि तक अखंड ध्यान किया। अपने ध्यान में उन्होंने अखंड भारत देखा। देश की स्थिति समझ ली। भारतवासीयोंके उद्धार के लिए एक व्यापक योजना बनाई। स्वामीजी कहते है, भारत के पतन का कारण भारत का असंगठित जीवन है। विश्व के अन्य लोगोंकी तुलना में हम अत्यंत हीन जीवन व्यतीत कर रहे है। हम आलसी बन गए है। हम घोर तामस से ग्रस्त है। व्यर्थ विवादोंमे उलझ गये है। इसी बात का फायदा विदेशियों ने उठाया। उन्होंने हमें गुलाम बनाकर बुरी तरह लुटा।
ऐसे निराशाजनक स्थिति से भारतीय समाज को अध्यात्मिक चेतना से स्वामीजी ने जागृत किया। विश्व सम्मेलन से सफल होकर लौटने के बाद स्वामीजीने तुरंत राष्ट्र को संगठित करना प्रारंभ किया। युवकों को एकत्र करने के लिए कोलम्बो से अल्मोरा तक युवा शक्ति को मार्गदर्शन किया। 1905 में बंगाल के विभाजन के विरुद्ध लढने के लिए कई युवकों ने स्वामीजी से प्रेरणा ली। लो। तिलक, सुभाष बोस, सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद ऐसे जननायको ने स्वामीजी से प्रेरण ली।
इतिहास के इस बात को समझकर हमें नि:स्वार्थ भाव से देश के लिए काम करना होगा। समर्पित जीवन की प्रेरणा स्वामीजी के विचारोंसे लेनी होगी। आज देश के लिए युवा शक्ति की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए विवेकानंद केंद्र से जुड़कर हमें मनुष्य निर्माण व राष्ट्र निर्माण के लिए काम करना होगा। सेवाव्रती, शिक्षार्थी, जीवनव्रती के रूप में हमें समय दान देना होगा। यह समय की मांग है की विवेकानंद केंद्र से जुडो और अपना समय दो। हमें प्रत्येक घर में सनातन जीवन मूल्य पहुँचाना है। कार्यकर्ता निर्माण करना है। इसलिए भारतमाता की चरणों मे सम्पूर्ण समर्पण की तयारी रखिये। इस देश के माता पिताओंसे मेरा आवाहन है की, राष्ट्र निर्माण के पुण्य कार्य में अपने पुत्रों व पुत्रियों के मार्ग में बाधा न डालते हुए उन्हें समर्पण की प्रेरणा दे। क्यों की यही राष्ट्र कार्य का सही समय है। इस दृष्टी से ये संकल्प शिबिर एक निर्णायक शिबिर है।
13 अक्तूबर
मा। विश्वासजी : सार्ध शती समारोह, प्रबुद्ध भारत आयाम राष्ट्रिय प्रमुख
विषय - स्वामीजी का राष्ट्रप्रेम और युवाओं को सन्देश
आज हमको भारत जागो विश्व जगाओ, ऐसा कहना पड रहा है, यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है। आज भी हम घोर तमस से बाहर नहीं आयें है। भारतीय युवाओं को जागृत करने के लिए उनमे चेतना उत्पन्न करने के लिए इस शिबिर का आयोजन किया है। काफी कष्टों से हम यहाँ पहुंचे है। ताकि अपने जीवन की दिशा सुनिश्चित करे। स्वामीजी के विचारों से प्रेरणा ग्रहण करे। केवल भारत में ही नहीं विश्व के अन्य देश तथा व्यक्तियों ने भी स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा ग्रहण की। जापान के प्रधान मंत्री भारत आये तो उन्होंने कहा हमने जो प्रगति की है उसके पीछे स्वामी विवेकानंद की ही प्रेरणा है। कारण जापान के द्रष्टा महापुरुष तेनसिन ओकेकुरा ने स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा ली थी।
स्वामी विवेकानंद ने भारत परिभ्रमण के दौरान धर्म की अवनति, टूटते जीवनमूल्य, गरीबी, निर्धनता, अज्ञान आदि बातें देखि। दूसरी ओर उन्होंने देखा की इन स्थितियों में भी भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक धरोहर सशक्त है। सांस्कृतिक भावधारा अक्षुण्ण है। विश्व को परिवार समजने की भावना काफी प्रबल है। सम्पूर्ण विश्व में एकात्मता की भावना को जन्म देनेवाली यह संस्कृति महानतम है। इसी महानतम संस्कृति ने सदियों से विश्व को त्याग और सेवा का अमर सन्देश दिया। 11 सितम्बर 1893 के बाद स्वामी विवेकानंद अमरीका में गणमान्य व्यक्ति बन गए। अमरिका में उन्होंने वैभव सम्पन्नता को देखा। सुख सुविधा होते हुए भी अपने देशवासियोंके स्मरणमात्र से वे रातभर रोते रहे। राष्ट्रप्रेम के कारण ही उन्होंने भारत में आकर युवकों का संघटन बनाया। युवको को प्रेरणा दी। आज हम सभी इस शिबिर से यह सन्देश लेकर जाएँ की हमें सेवा के माध्यम से ही अपने जीवन तथा कार्य को आगे बढ़ाना है।
मा। निवेदिता दीदी : राष्ट्रिय उपाध्यक्ष, विवेकानंद केंद्र
विषय - भारत जागो विश्व जगाओ
भारत जागो विश्व जगाओ, यह स्वामी विवेकानंद का अमर सन्देश है। यह सन्देश याने उनके कार्य का निचोड़ है। आज भारत सोया हुआ है। तामस से पीड़ित है। जो विश्व को जगा सकता है, वही सो रहा है। इसलिए हमें स्वामी विवेकानन्द के विचारों को अच्छी तरह आत्मसात करना होगा। भोगवाद को नष्ट करने का तत्त्वज्ञान विश्व में आज केवल भारत के पास ही है। हमारा देश आज भी जीवित है क्यों की हमारे पूर्वजों ने हमारे समाज की व्यवस्था अद्वैत तत्वज्ञान पर खडी की है। आज हमें यह समझाना होगा की हमारे संस्कृति में ऐसा क्या है की जिसका हम त्याग कभी भी न करे और ऐसा क्या है की जिसमे हम समय के साथ परिवर्तन कर सकते है। यह सब छोड़कर आज प्रत्येक व्यक्ति 'क्रायींग बेबीज' बन गए है। जब तक हम निर्दोष नहीं होंगे तब तक हमारे प्रगति का मार्ग प्रशस्त नहीं होगा। इसलिए स्वामीजी कहते है, मुझे ऐसे युवाओं की आवश्यकता है जो अपने समाज पर प्रेम करे और अपने ह्रदय को विशाल तथा व्यापक बनाये। समाज की समस्त समस्याओं को समझते हुए अपना समय दान देगा। हमारे पूर्वजों ने अनेक आक्रमणों और कष्टों को सहकर इस पवित्र आध्यात्मिक संस्कृति का जतन किया। हमारे मन में अपने पवित्र संस्कृति के प्रति सन्मान और स्वाभिमान जागृत करे। इसलिए आओ, हम अपने धरोहर को समझते हुए स्वयं जगकर विश्व को जगाएं।
14 अक्तूबर
मा। बालकृष्णनजी : राष्ट्रिय उपाध्यक्ष, विवेकानंद केंद्र
विषय - सार्ध शती समारोह और पांच आयाम
आज भारत अनेक गुप्त आक्रमणों का सामना कर रहा है। इस अवस्था में सभी स्थरो पर देश वासियों की नैतिकता गिरती जा रही है। आज हमें इन स्थितियों से उभरने के लिए अपने अंतर आत्मा को जागृत करते हुए सम्पूर्ण देश में भव्य दिव्य रूप में सार्ध शती समारोह के उपक्रमों को ले जाना है। इसलिए स्वार्थ त्याग कर राष्ट्र का पुनर्निमाण हमें करना है। इस हेतु गांव गांव, शहर शहर पहुँचाने के लिए पांच आयामों के माध्यम से हम कार्य करेंगे। देश के युवाओं को सही दिशा देने के लिए युवा शक्ति आयाम के माध्यम से हमें काम करना है। अग्रेंजों को देश से निकलने के लिए इस देश में यदि क्रांतिकारियों का निर्माण हो सकता है तो देश के नकारात्मकता व दुर्बलता को दूर करने के लिए निस्वार्थी युवा कार्यकर्ता क्यों नहीं। हम जियेंगे तो भारत के लिए, मरेंगे तो भारत के लिए। यह देश मात्रुसंस्कृति से संपन्न देश है। इस देश के उत्थान में स्त्रियों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसलिए सभी स्त्रियाँ संवर्धिनी के माध्यम से मिलजुलकर काम करे। भारत में आज प्रबुद्ध वर्ग निर्णायक शक्ति के रूप में दिखाई दे रहा है। उसे सही दिशा देना आवश्यक है। उनके साथ बैठकर सामाजिक तथा राष्ट्रिय समस्याओ के उपायों पर चर्चा हो, इसलिए प्रबुद्ध भारत आयाम के माध्यम से हमें काम करना है। गाँव की ओर चलो, यह संदेश हमारे महापुरुषों ने दिया है। स्वामीजी कहते थे भारत गांव में बसता है। गांव की विशेषताओं को समझते हुए हमें ग्रामायण के माध्यम से गाँव गाँव पहुँचना है। भारत में करीब 10 करोड़ से भी अधिक पिछड़ी जनजाति के लोग रहतें है। इन जातियों में धर्मान्तरण की बहोत बड़ी समस्या है। अब तक इन जातियों में पचास प्रतिशत धर्मान्तरण होने का अनुमान है। यदि समय रहते इन लोगों की पहचान व चेतना को जगाया नहीं गया तो यह समस्या और भयावह बन सकती है। इसलिए अस्मिता आयाम के माध्यम से हमें इस क्षेत्र में काम करना होगा।
मीरा दीदी : प्रान्त संगठक, असम
विषय - कार्य की चतु:सूत्री
सांस्कृतिक व आध्यात्मिक सम्पन्नता यह भारत की प्रमुख विशेषता है। धर्म तथा आध्यात्म के माध्यम से भारत ने विश्व को कामधेनु जैसी एक आदर्श समाज व्यवस्था दी। जिसमे हमारे ऋषी मुनियों का समर्पण है। मानवता का सन्देश कूट कूट कर भरा है। हर क्षेत्र में भारत ने स्थाई रचना दी, जिस आधार पर विश्व आज भी भारत की ओर ताक रहा है। ये सारी व्यवस्थाए एक दिन में नहीं बनी।
काल के प्रवाह में स्वार्थ के कारण इन व्यवस्था ओं की ओर दुर्लक्ष हो गया। स्वामीजी बताते है की, इस नौका ने हजारों सालों तक मानवता को पार किया। आज उसमे कुछ छेद हुए है। इस छेड़ को हम सबको मिलकर मिटाना होगा।
इसलिए हमें सार्वभौमिक, सर्वस्पर्शी, स्थायी एवं वर्तमान का लक्ष्य निर्धारण करने वाली और निश्चित यश देनेवाली योजना बनाकर कार्य करना होगा। यही हमारे कार्य की चतु:सूत्री होगी।
रुपेश भैय्या : प्रान्त संगठक, अरुणाचल प्रदेश
विषय - परिणामकारी कार्यकर्ता
विनाप्रशिक्षण कार्य से परिणामकारी कार्य नहीं होगा। अपेक्षित कार्य होना है तो प्रशिक्षण तो होगा ही। प्रशिक्षण यह निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है। ध्येय की स्पष्टता भी आवश्यक है। ध्येय स्पष्ट होने से उसके अनुरूप आचरण होने लगता है। नेताजी सुभाष चन्द्र आय सी एस उत्तीर्ण हुए परन्तु उनका ध्येय निश्चित था, स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी बारिस्टर हुए, लो. तिलक को गणित विषय में विशेष रूचि थी, फिर भी समय की आवश्यकता को समझते हुए इन युवाओं ने अपने जीवन का मार्ग निश्चित किया।
पुराने कार्यकर्ता के व्यवहार से नए कार्यकर्ता सीख जाते है, इसका हमें ध्यान रखना पड़ेगा। एकत्र कार्य करते समय कभी भी इर्षा, राग, द्वेष, अहम् बढ़ सकते है, उन पर विजय पाना आवश्यक होता है। एक प्रकार से कार्यकर्ता को सदाचरणतत्पर रहने की आवश्यकता होती है। कार्य करते समय अपने क्षमताओं का विकास होना है। अनुभव से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। अपने अन्दर के अमृत तत्त्व का प्रकटीकरण करने के लिए हम कार्य करते है, इस धारणा को ध्यान में रखना है।
निवेदिता दीदी : राष्ट्रिय उपाध्यक्ष, विवेकानंद केंद्र
समापन सत्र
ऐसा क्या है की जो सदैव रहनेवाला है ?, शाश्वत आनंद कुछ है ? मेरे जीवन का क्या प्रयोजन है इस प्रकार के प्रश्न मन में आने लगते है तो सही अर्थ में मनुष्य जीवन की शुरुआत होती है। इन प्रश्नों ने ही हमें यहाँ लाया है। ऋषियों ने अंतर्मन की खोज करते हुए इन प्रश्नों का जवाब पाया। मै चिरंतन आत्मा हूँ, केवल शरीर नहीं - इसकी अनुभूति करना ही जीवन का ध्येय है। एक जन्म में प्राप्त होनेवाली यह बात नहीं, इसलिए इस जन्म में हमें उस दिशा में प्रवास शुरू करना है। जीवन का अंतिम लक्ष्य प्राप्त करना है तो इधर उधर भटकते नहीं। जीवन का ध्येय राष्ट्र के ध्येय की विपरीत नहीं हो सकता। इस राष्ट्र का ध्येय सारे विश्व को आध्यात्म में मार्गदर्शन करना है। उच्च विचारों के संपर्क में रहते हुए ही हम उच्च ध्येय की ओर जा सकते है। ये व्यक्तिगत कार्य नहीं, संगठित करने का कार्य है। स्वामी विवेकानंद ने संगठन की आवश्यकता बताई। इसलिए हमें सामूहिक रूप से नियोजन करके कार्य करना है। यह सृष्टि समर्पण से निर्मित है। हम कितना जादा समय राष्ट्र के लिए देंगे इसका विचार हमें करना होगा। सार्ध शती समारोह हमारे लिए अवसर है। स्वामी विवेकानंद के वेदांत विचार, आत्मा के अमरत्व के विचार लोगों तक पहुँचाने के लिए अधिक उर्जा लगाने की आवश्यकता है। यह कार्य हम सबको करना है। भगवान सधानों को चुनता है। हमें साधन, उपकरण बनाना है।
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स्थल - कन्याकुमारी।
उत्तर भारत के 18 प्रान्तों से 676 युवक युवती सहभागी।
शिबिर दायित्ववाली चमू - 230
शिबिर कालावधी - 12 अक्तूबर से 15 अक्तूबर
12 अक्तूबर 2012
उद्घाटन सत्र -
मा। किशोरजी, सार्ध शती समारोह के अखिल भारतीय समन्वयक
भारत जागो ! विश्व जगाओ !! इस महाशिबिर में स्वामीजी के विचारोंसे प्रेरित होकर हम निश्चित उद्देश से पधारे है। भारत विश्व का एक प्राचीन देश है। यह विश्व का सबसे युवा देश भी है। काफी बड़ा युवा धन इस देश को प्राप्त है। परन्तु देश की वर्तमान स्थितियां अस्वस्थ करती है। अतीत में इस देश ने अनेक संकटो का सामना किया। काफी समस्याओंसे देश संघर्षरत है। स्वतंत्रता के पश्चात् शिक्षा के माध्यम से जो सांस्कृतिक जुड़ाव होना चाहिए था, जो अखंडता व एकता प्रस्थापित होनी चाहिए थी वह नहीं हुआ। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे समय में इस देश को कठिन स्थितियोंसे बहार निकालकर फिरसे वैभवपूर्ण स्थानपर स्थापित करना आवश्यक है। जगद्गुरु भारत स्वामी विवेकनन्दजी का स्वप्न था। युवा पीढ़ीही इस स्वप्न को साकार करेगी ऐसा विश्वास उन्हें था। इसलिए युवओंके जागृती हेतु इस संकल्प महाशिबिर का कन्याकुमारी में आयोजन किया है। यह वह स्थान है जहाँ स्वामीजी को अपने जीवित कार्य का साक्षात्कार हुआ था।
स्वामी विवेकानंद के राष्ट्र जागरण करनेवाले विचार घर घर पहुँचाने के लिए एक बृहद योजना बनाई गयी है। इसके तहत देश के 4 लाख गांवों में संपर्क किया जायेगा। 4 करोड़ घरों तक संपर्क और करीब 1 लाख से अधिक स्थानों पर सामूहिक सूर्यनमस्कार, 3 लाख जगहों पर शोभा यात्रा आदि उपक्रमों का आयोजन होगा।
मा। बालकृष्णनजी, अखिल भारतीय उपाध्यक्ष, विवेकानंद केंद्र
देवी पार्वती, स्वामी विवेकानंद और विवेकानंद केंद्र के निर्माता मा। एकनाथजीकी तपोभूमि कन्याकुमारी में आयोजित इस महाशिबिर में हम विभिन्न प्रान्तों से एकता की अभिव्यक्ति के लिए एकत्र आए है। अपने जीवन उद्देश को समझने के लिए आये है। उस उद्देश को कैसे पूर्ण करना है यह जानने के लिए आये है। इस संकल्प शिबिर का उद्देश है की सम्पूर्ण भारतीय युवा पीढ़ी में एक नवचेतना जागृत करना। इस दृष्टी से इस शिबिर का विशेष महत्व है। यह शिबिर याने अपने जीवन का एक टर्निंग पोईन्ट है। अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए व जीवन की दिशा सुनिश्चित करने के लिए निश्चित रूप से इस शिबिर का बड़ा योगदान होगा। सम्पूर्ण भारत परिभ्रमण करके स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी आये। कन्याकुमारी में उन्होंने माँ पार्वती के चरणों में प्रार्थना की और अपने जीवन के उद्देश का साक्षात्कार कर लिया। माँ का कार्य याने भारत माता का कार्य इस बात को उन्होंने समझ लिया। सम्पूर्ण विश्व को जगाने के लिए उन्होंने माँ पार्वती से शक्ति प्राप्त की। उन्हें माँ पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उसी प्रेरणा से सागर में स्थित श्रीपाद शिलापर 3 दिन और 3 रात्रि तक अखंड ध्यान किया। अपने ध्यान में उन्होंने अखंड भारत देखा। देश की स्थिति समझ ली। भारतवासीयोंके उद्धार के लिए एक व्यापक योजना बनाई। स्वामीजी कहते है, भारत के पतन का कारण भारत का असंगठित जीवन है। विश्व के अन्य लोगोंकी तुलना में हम अत्यंत हीन जीवन व्यतीत कर रहे है। हम आलसी बन गए है। हम घोर तामस से ग्रस्त है। व्यर्थ विवादोंमे उलझ गये है। इसी बात का फायदा विदेशियों ने उठाया। उन्होंने हमें गुलाम बनाकर बुरी तरह लुटा।
ऐसे निराशाजनक स्थिति से भारतीय समाज को अध्यात्मिक चेतना से स्वामीजी ने जागृत किया। विश्व सम्मेलन से सफल होकर लौटने के बाद स्वामीजीने तुरंत राष्ट्र को संगठित करना प्रारंभ किया। युवकों को एकत्र करने के लिए कोलम्बो से अल्मोरा तक युवा शक्ति को मार्गदर्शन किया। 1905 में बंगाल के विभाजन के विरुद्ध लढने के लिए कई युवकों ने स्वामीजी से प्रेरणा ली। लो। तिलक, सुभाष बोस, सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद ऐसे जननायको ने स्वामीजी से प्रेरण ली।
इतिहास के इस बात को समझकर हमें नि:स्वार्थ भाव से देश के लिए काम करना होगा। समर्पित जीवन की प्रेरणा स्वामीजी के विचारोंसे लेनी होगी। आज देश के लिए युवा शक्ति की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए विवेकानंद केंद्र से जुड़कर हमें मनुष्य निर्माण व राष्ट्र निर्माण के लिए काम करना होगा। सेवाव्रती, शिक्षार्थी, जीवनव्रती के रूप में हमें समय दान देना होगा। यह समय की मांग है की विवेकानंद केंद्र से जुडो और अपना समय दो। हमें प्रत्येक घर में सनातन जीवन मूल्य पहुँचाना है। कार्यकर्ता निर्माण करना है। इसलिए भारतमाता की चरणों मे सम्पूर्ण समर्पण की तयारी रखिये। इस देश के माता पिताओंसे मेरा आवाहन है की, राष्ट्र निर्माण के पुण्य कार्य में अपने पुत्रों व पुत्रियों के मार्ग में बाधा न डालते हुए उन्हें समर्पण की प्रेरणा दे। क्यों की यही राष्ट्र कार्य का सही समय है। इस दृष्टी से ये संकल्प शिबिर एक निर्णायक शिबिर है।
13 अक्तूबर
मा। विश्वासजी : सार्ध शती समारोह, प्रबुद्ध भारत आयाम राष्ट्रिय प्रमुख
विषय - स्वामीजी का राष्ट्रप्रेम और युवाओं को सन्देश
आज हमको भारत जागो विश्व जगाओ, ऐसा कहना पड रहा है, यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है। आज भी हम घोर तमस से बाहर नहीं आयें है। भारतीय युवाओं को जागृत करने के लिए उनमे चेतना उत्पन्न करने के लिए इस शिबिर का आयोजन किया है। काफी कष्टों से हम यहाँ पहुंचे है। ताकि अपने जीवन की दिशा सुनिश्चित करे। स्वामीजी के विचारों से प्रेरणा ग्रहण करे। केवल भारत में ही नहीं विश्व के अन्य देश तथा व्यक्तियों ने भी स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा ग्रहण की। जापान के प्रधान मंत्री भारत आये तो उन्होंने कहा हमने जो प्रगति की है उसके पीछे स्वामी विवेकानंद की ही प्रेरणा है। कारण जापान के द्रष्टा महापुरुष तेनसिन ओकेकुरा ने स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा ली थी।
स्वामी विवेकानंद ने भारत परिभ्रमण के दौरान धर्म की अवनति, टूटते जीवनमूल्य, गरीबी, निर्धनता, अज्ञान आदि बातें देखि। दूसरी ओर उन्होंने देखा की इन स्थितियों में भी भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक धरोहर सशक्त है। सांस्कृतिक भावधारा अक्षुण्ण है। विश्व को परिवार समजने की भावना काफी प्रबल है। सम्पूर्ण विश्व में एकात्मता की भावना को जन्म देनेवाली यह संस्कृति महानतम है। इसी महानतम संस्कृति ने सदियों से विश्व को त्याग और सेवा का अमर सन्देश दिया। 11 सितम्बर 1893 के बाद स्वामी विवेकानंद अमरीका में गणमान्य व्यक्ति बन गए। अमरिका में उन्होंने वैभव सम्पन्नता को देखा। सुख सुविधा होते हुए भी अपने देशवासियोंके स्मरणमात्र से वे रातभर रोते रहे। राष्ट्रप्रेम के कारण ही उन्होंने भारत में आकर युवकों का संघटन बनाया। युवको को प्रेरणा दी। आज हम सभी इस शिबिर से यह सन्देश लेकर जाएँ की हमें सेवा के माध्यम से ही अपने जीवन तथा कार्य को आगे बढ़ाना है।
मा। निवेदिता दीदी : राष्ट्रिय उपाध्यक्ष, विवेकानंद केंद्र
विषय - भारत जागो विश्व जगाओ
भारत जागो विश्व जगाओ, यह स्वामी विवेकानंद का अमर सन्देश है। यह सन्देश याने उनके कार्य का निचोड़ है। आज भारत सोया हुआ है। तामस से पीड़ित है। जो विश्व को जगा सकता है, वही सो रहा है। इसलिए हमें स्वामी विवेकानन्द के विचारों को अच्छी तरह आत्मसात करना होगा। भोगवाद को नष्ट करने का तत्त्वज्ञान विश्व में आज केवल भारत के पास ही है। हमारा देश आज भी जीवित है क्यों की हमारे पूर्वजों ने हमारे समाज की व्यवस्था अद्वैत तत्वज्ञान पर खडी की है। आज हमें यह समझाना होगा की हमारे संस्कृति में ऐसा क्या है की जिसका हम त्याग कभी भी न करे और ऐसा क्या है की जिसमे हम समय के साथ परिवर्तन कर सकते है। यह सब छोड़कर आज प्रत्येक व्यक्ति 'क्रायींग बेबीज' बन गए है। जब तक हम निर्दोष नहीं होंगे तब तक हमारे प्रगति का मार्ग प्रशस्त नहीं होगा। इसलिए स्वामीजी कहते है, मुझे ऐसे युवाओं की आवश्यकता है जो अपने समाज पर प्रेम करे और अपने ह्रदय को विशाल तथा व्यापक बनाये। समाज की समस्त समस्याओं को समझते हुए अपना समय दान देगा। हमारे पूर्वजों ने अनेक आक्रमणों और कष्टों को सहकर इस पवित्र आध्यात्मिक संस्कृति का जतन किया। हमारे मन में अपने पवित्र संस्कृति के प्रति सन्मान और स्वाभिमान जागृत करे। इसलिए आओ, हम अपने धरोहर को समझते हुए स्वयं जगकर विश्व को जगाएं।
14 अक्तूबर
मा। बालकृष्णनजी : राष्ट्रिय उपाध्यक्ष, विवेकानंद केंद्र
विषय - सार्ध शती समारोह और पांच आयाम
आज भारत अनेक गुप्त आक्रमणों का सामना कर रहा है। इस अवस्था में सभी स्थरो पर देश वासियों की नैतिकता गिरती जा रही है। आज हमें इन स्थितियों से उभरने के लिए अपने अंतर आत्मा को जागृत करते हुए सम्पूर्ण देश में भव्य दिव्य रूप में सार्ध शती समारोह के उपक्रमों को ले जाना है। इसलिए स्वार्थ त्याग कर राष्ट्र का पुनर्निमाण हमें करना है। इस हेतु गांव गांव, शहर शहर पहुँचाने के लिए पांच आयामों के माध्यम से हम कार्य करेंगे। देश के युवाओं को सही दिशा देने के लिए युवा शक्ति आयाम के माध्यम से हमें काम करना है। अग्रेंजों को देश से निकलने के लिए इस देश में यदि क्रांतिकारियों का निर्माण हो सकता है तो देश के नकारात्मकता व दुर्बलता को दूर करने के लिए निस्वार्थी युवा कार्यकर्ता क्यों नहीं। हम जियेंगे तो भारत के लिए, मरेंगे तो भारत के लिए। यह देश मात्रुसंस्कृति से संपन्न देश है। इस देश के उत्थान में स्त्रियों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसलिए सभी स्त्रियाँ संवर्धिनी के माध्यम से मिलजुलकर काम करे। भारत में आज प्रबुद्ध वर्ग निर्णायक शक्ति के रूप में दिखाई दे रहा है। उसे सही दिशा देना आवश्यक है। उनके साथ बैठकर सामाजिक तथा राष्ट्रिय समस्याओ के उपायों पर चर्चा हो, इसलिए प्रबुद्ध भारत आयाम के माध्यम से हमें काम करना है। गाँव की ओर चलो, यह संदेश हमारे महापुरुषों ने दिया है। स्वामीजी कहते थे भारत गांव में बसता है। गांव की विशेषताओं को समझते हुए हमें ग्रामायण के माध्यम से गाँव गाँव पहुँचना है। भारत में करीब 10 करोड़ से भी अधिक पिछड़ी जनजाति के लोग रहतें है। इन जातियों में धर्मान्तरण की बहोत बड़ी समस्या है। अब तक इन जातियों में पचास प्रतिशत धर्मान्तरण होने का अनुमान है। यदि समय रहते इन लोगों की पहचान व चेतना को जगाया नहीं गया तो यह समस्या और भयावह बन सकती है। इसलिए अस्मिता आयाम के माध्यम से हमें इस क्षेत्र में काम करना होगा।
मीरा दीदी : प्रान्त संगठक, असम
विषय - कार्य की चतु:सूत्री
सांस्कृतिक व आध्यात्मिक सम्पन्नता यह भारत की प्रमुख विशेषता है। धर्म तथा आध्यात्म के माध्यम से भारत ने विश्व को कामधेनु जैसी एक आदर्श समाज व्यवस्था दी। जिसमे हमारे ऋषी मुनियों का समर्पण है। मानवता का सन्देश कूट कूट कर भरा है। हर क्षेत्र में भारत ने स्थाई रचना दी, जिस आधार पर विश्व आज भी भारत की ओर ताक रहा है। ये सारी व्यवस्थाए एक दिन में नहीं बनी।
काल के प्रवाह में स्वार्थ के कारण इन व्यवस्था ओं की ओर दुर्लक्ष हो गया। स्वामीजी बताते है की, इस नौका ने हजारों सालों तक मानवता को पार किया। आज उसमे कुछ छेद हुए है। इस छेड़ को हम सबको मिलकर मिटाना होगा।
इसलिए हमें सार्वभौमिक, सर्वस्पर्शी, स्थायी एवं वर्तमान का लक्ष्य निर्धारण करने वाली और निश्चित यश देनेवाली योजना बनाकर कार्य करना होगा। यही हमारे कार्य की चतु:सूत्री होगी।
रुपेश भैय्या : प्रान्त संगठक, अरुणाचल प्रदेश
विषय - परिणामकारी कार्यकर्ता
विनाप्रशिक्षण कार्य से परिणामकारी कार्य नहीं होगा। अपेक्षित कार्य होना है तो प्रशिक्षण तो होगा ही। प्रशिक्षण यह निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है। ध्येय की स्पष्टता भी आवश्यक है। ध्येय स्पष्ट होने से उसके अनुरूप आचरण होने लगता है। नेताजी सुभाष चन्द्र आय सी एस उत्तीर्ण हुए परन्तु उनका ध्येय निश्चित था, स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी बारिस्टर हुए, लो. तिलक को गणित विषय में विशेष रूचि थी, फिर भी समय की आवश्यकता को समझते हुए इन युवाओं ने अपने जीवन का मार्ग निश्चित किया।
पुराने कार्यकर्ता के व्यवहार से नए कार्यकर्ता सीख जाते है, इसका हमें ध्यान रखना पड़ेगा। एकत्र कार्य करते समय कभी भी इर्षा, राग, द्वेष, अहम् बढ़ सकते है, उन पर विजय पाना आवश्यक होता है। एक प्रकार से कार्यकर्ता को सदाचरणतत्पर रहने की आवश्यकता होती है। कार्य करते समय अपने क्षमताओं का विकास होना है। अनुभव से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। अपने अन्दर के अमृत तत्त्व का प्रकटीकरण करने के लिए हम कार्य करते है, इस धारणा को ध्यान में रखना है।
निवेदिता दीदी : राष्ट्रिय उपाध्यक्ष, विवेकानंद केंद्र
समापन सत्र
ऐसा क्या है की जो सदैव रहनेवाला है ?, शाश्वत आनंद कुछ है ? मेरे जीवन का क्या प्रयोजन है इस प्रकार के प्रश्न मन में आने लगते है तो सही अर्थ में मनुष्य जीवन की शुरुआत होती है। इन प्रश्नों ने ही हमें यहाँ लाया है। ऋषियों ने अंतर्मन की खोज करते हुए इन प्रश्नों का जवाब पाया। मै चिरंतन आत्मा हूँ, केवल शरीर नहीं - इसकी अनुभूति करना ही जीवन का ध्येय है। एक जन्म में प्राप्त होनेवाली यह बात नहीं, इसलिए इस जन्म में हमें उस दिशा में प्रवास शुरू करना है। जीवन का अंतिम लक्ष्य प्राप्त करना है तो इधर उधर भटकते नहीं। जीवन का ध्येय राष्ट्र के ध्येय की विपरीत नहीं हो सकता। इस राष्ट्र का ध्येय सारे विश्व को आध्यात्म में मार्गदर्शन करना है। उच्च विचारों के संपर्क में रहते हुए ही हम उच्च ध्येय की ओर जा सकते है। ये व्यक्तिगत कार्य नहीं, संगठित करने का कार्य है। स्वामी विवेकानंद ने संगठन की आवश्यकता बताई। इसलिए हमें सामूहिक रूप से नियोजन करके कार्य करना है। यह सृष्टि समर्पण से निर्मित है। हम कितना जादा समय राष्ट्र के लिए देंगे इसका विचार हमें करना होगा। सार्ध शती समारोह हमारे लिए अवसर है। स्वामी विवेकानंद के वेदांत विचार, आत्मा के अमरत्व के विचार लोगों तक पहुँचाने के लिए अधिक उर्जा लगाने की आवश्यकता है। यह कार्य हम सबको करना है। भगवान सधानों को चुनता है। हमें साधन, उपकरण बनाना है।
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