Monday, January 7, 2013

डा. मोहन भागवत ने वास्तव में क्या कहा ?

Dear All, 

please sparesome time from your busy schedule and read this carefully. I really feel pity about the thought process of Indian Media the way they twist n turn the "genuine statement to controversial argument with so called "celebrity panelists" on NEWS channels.....
Kindly watch the video on Youtube and listen what Dr. Mohan Bhagawat has said. He has just mentioned that the "Indian Culture" is - "earn and enjoy culture"is making us forget our "Bharatiya Culture" i.e. Basic Culture of respecting women..

Please watch the video..I am confident that you will also feel pity about "Indian Media's Mentality and their so called "celebrity panels"...  


Subject: डा. मोहन भागवत ने वास्तव में क्या कहा ?
डा. मोहन भागवत ने वास्तव में क्या कहा ?
स्रोत : News Bharati Hindi      तारीख: 1/4/2013 6:02:30 PM
मुंबईजनवरी ४ : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत के कथित वक्तव्य पर मीडिया में बड़ा विवाद चल रहा है । वास्तव में डा. भागवत ने क्या कहा यह जानने का प्रयास न्यूजभारती ने किया । फलस्वरूप जिस कार्यक्रम में डा. भागवत का वह कथित वक्तव्य आया उस कार्यक्रम का वीडियो रिकार्डिंग न्यूजभारती को प्राप्त हुआ । न्यूजभारती अपने पाठकों के लिए उस वीडियो का प्रतिलेख प्रस्तुत कर रहा है । 
असम के सिल्चर में प्रबुद्ध नागरिकों के साथ हुए वार्तालाप कार्यक्रम में उपस्थित एक सज्जन ने डा. भागवत से प्रश्न पूछा,‘‘ये जो इंडिया में आजकल जो अट्रॉसिटीज अगेन्स्ट विमेनरेप्समॉलेस्टेशन बढ़ रहे हैइनमें हिंदुओंपर ज्यादा अत्याचार होते दिख रहे है । यह हिन्दुओंका मनोबल नष्ट करने का प्रयास लग रहा है । इसके संदर्भ में आपके क्या विचार हैं ?’’
इस प्रश्न के उत्तर में डा. भागवत ने कहा ‘‘इंडिया में जो यह घट रहा हैबढ़ रहा है वह बहुत खतरनाक और अश्लाघ्य है । लेकिन ये भारत में नहीं है । यह इंडिया में है । जहां इंडिया नहीं हैकेवल भारत है वहां ये बातें नही होतीआज भी । जिसने भारत से नाता तोड़ा उसका यह हुआ । क्योंकि यह होने के पीछे अनेक कारण हैं । उसमें एक प्रमुख कारण यह भी है कि हम मानवता को भूल गयेसंस्कारों को भूल गये ।मानवतासंस्कार पुस्तकोंसे नहीं आतेपरंपरा से आते हैं । लालन-पालन से मिलते हैंपरिवार से मिलते है,परिवार में हम क्या सिखाते है उससे मिलते हैं ।

पारिवारिक संस्कारोंकी आवश्यकता
दुनिया की महिलाकी तरफ देखने की दृष्टि वास्तव में क्या है ?दिखता है कीमहिला पुरुष के लिए भोगवस्तु है । किन्तु वे ऐसा बोलेंगे नहीं । बोलेंगे तो बवाल हो जाएगा । किन्तु मूल में जा कर आप अध्ययन करेंगे तो महिला उपभोग के लिए हैऐसा ही व्यवहार रहता है । वह एक स्वतंत्र प्राणी है,इसलिए उसे समानता दी जाती है । किन्तु भाव वही उपभोग वाला होता है । हमारे यहां ऐसा नहीं है । हम कहते हैं कि  महिला जगज्जननी है । कन्याभोजन होता है हमारे यहांक्योंकि वह जगज्जननी है । आज भी उत्तर भारत में कन्याओंको पैर छूने नहीं देतेक्योंकि वह जगज्जननी का रूप है । उल्टे उनके पैर छुए जाते हैं । बड़े-बड़े नेता भी ऐसा करते हैं । उनके सामने कोई नमस्कार करने आए तो मना कर देते हैं,स्वयं झुक कर नमस्कार करते हैं । वो हिंदुत्त्ववादी नहीं है । फिर भी ऐसा करते हैं । क्योंकि यह परिवार के संस्कार हैं ।अब यह संस्कारआजके तथाकथित एफ्लुएन्ट परिवार मेंनहीं हैं । वहां तो करिअरिझम है । पैसा कमाओपैसा कमाओ । बाकी किसी चीज से कोई लेना-देना नहीं ।

शिक्षा में मानवता के संस्कार होने आवश्यक
शिक्षा से इन संस्कारों को बाहर करने की होड़ चली है । शिक्षा व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाने के लिए होती है । किन्तु आजकल ऐसा नहीं दिखता । शिक्षा मानवत्त्व से देवत्त्वकी ओर ले जाने वाली होनी चाहिए । किन्तु ऐसी शिक्षा लगभग शिक्षा संस्थानों से हटादी गई है ।समाज में बड़े लोगों को जो आदर्श रखने चाहिए वो आदर्श आज नहीं रखे जाते । उसको ठीक किया जाना चाहिए । कड़ा कानून बिलकुल होना चाहिए । इसमें कोई दो राय नहीं है । कड़ी सजा दोषियों को होनी ही चाहिए । इसमें कोई दो राय नही है । फांसी की होती है तो हो । विद्वान लोग विचार करे और तय करे । लेकिन केवल कानूनों और सजा के प्रावधानों से नहीं बनती बात । ट्रॅफिक के लिए कानून है मगर क्या स्थिति होती है ?जब तक पुलिस होती हैतब तक कानून मानते है । कभी-कभी तो पुलिस के होनेपर भी नहीं मानते । जितना बड़ा शहर और जितने अधिक संपन्न व सुशिक्षित लोग उतने ज्यादा ट्रॅफिक के नियम तोड़े जाते हैं । मैं कोई टीका-टिप्पणी नहीं कर रहा हूं । केवल ऑब्जर्व कर रहा हूं । मैं विमान में बैठा था । पास में एक सज्जन बैठे थे । मोबाइल पर बात कर रहे थे । विमान का दरवाजा बन्द हुआ । किन्तु उनकी बात बन्द नहीं हुई । एअर होस्टेस चार बारबात बन्द करने के लिए कह गई । इनके लगातार फोन काल आ रहे थे । अबकी बार एअरहोस्टेस को आते हुए देख वे भड़क उठे और कहने लगे,२८ इंजिनिअरिंग संस्थानोंमें डिसिप्लिन रखने का जिम्मा मेरे उपर हैऔर आप मुझे डिसिप्लिन सिखा रही है ! ’अब अगर २८ संस्थाओं में डिसिप्लिन रखने की जिम्मेदारी जिस पर हैवह एरोप्लेन में दी जानेवाली सामान्य सूचनाओं का पालन नहीं करता तो उसे हम क्या कहे ?इसके विपरीत हमारे वनवासी क्षेत्रों में चले जाएं । जहां अनपढ लोग हैंगरीब लोग हैं । उनके घर का वातावरण देखो । कितना आनन्द होता है । कोई खतरा नहीं । बहुत सभ्यबहुत सुशील । वहां परंपरा, परिवार की शिक्षा कायम है । शहरों मेंशिक्षा का मनुष्यत्त्व से नाता हमने तोड़ दिया इसीलिए ऐसा होता है ।

बिना संस्कार कानून असरदार नहीं
कानून और व्यवस्था अगर चलनी हैउसके लिए मनुष्य पापभीरू होना हैतो उसके लिए संस्कारोंका होना जरूरी है । अपने संस्कृति के संस्कारों को हमेंजल्द जीवित करना पड़ेगा ।शिक्षा में कर लेंगेतोपरिस्थिति बदल पाएंगे । तब तक के लिए कड़े कानूनकड़ी सजाएं आवश्यक है । दण्ड हमेशा होना चाहिए शासन के हाथों में और वह ठीक दिशा में चलना चाहिए । वह इन सबका प्रोटेस्ट करने वालों पर नहीं चलना चहिए । उसके लिए उनका संस्कार भी आवश्यक है । वो वातावरण से मिलता है । पर वो भी आज नहीं है । हम यह करें तो इस समस्या का समाधान पा सकते हैं ।

मातृशक्ति है भोगवस्तु नहीं
हमारी महिलाओं की ओर देखने की दृष्टि वे मातृशक्ति है यही है । वे भोगवस्तु नहीं,देवी हैं । प्रकृति की निर्मात्री है । हम सब लोगों की चेतना की प्रेरक शक्ति है और हमारे लिए सबकुछ देनेवाली माता है । यह दृष्टि जब तक हम सबमें लाते नहीं तब तक ये बातें रुकेगी नहीं । केवल कानून बनानेसे काम नहीं चलेगा । वो होना चाहिए किन्तु उसके साथ संस्कार भी होने चाहिए ।’’
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Complete Video : https://www.youtube.com/watch?v=aGu8nNLfpyEAlso please see the blog of Ashis Nandy who says Bhagwat is right on Tehlka.comhttp://tehelka.com/ashis-nandy-says-bhagwat-is-right/
Kiran bedi has twiteed that Mr.Bhagwat is focusing on Indian Values& media should amend it's impression...
http://www.youtube.com/watch?v=aGu8nNLfpyE&feature=youtu.be
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मित्रांनो, नमस्कार,
संघद्वेषाची कावीळ झालेल्या विकाऊ पत्रकारांना आता हे उत्तर पाठवण्याची वेळ आली आहे. आपल्या संपर्कातील सर्वांना - फक्त संघ स्वयंसेवकच नव्हे तर इतर संघप्रेमी आणि संघद्वेषी लोकांना सुद्धा हे पत्र आवर्जून पाठवावे. (soft आणि hard copy सुद्धा). संघाबाबत सतत संभ्रम निर्माण करायचा आणि समाजात संघाची बदनामी करायची हेच ज्यांचे धोरण आहे अशा पत्रकारांच्या किडक्या आणि सडक्या मेंदूची समाजाला गरज नाही हे ज्यावेळी त्यांना कळेल त्या वेळीच ते कदाचित (?) सुधारतील. सरसंघचालकांची आणि पर्यायाने संघाची बदनामी करण्याच्या या विषारी मोहिमेला आपापल्या परीने थांबवायचा प्रयत्न आपण प्रत्येकाने करू या !
भारतमाता की जय !

http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=aGu8nNLfpyE

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