Sunday, May 5, 2013

स्वामी विवेकानंद : हिंदू, हिंदू राष्ट्र और हिंदू धर्म

 ‘हिंदूशब्द को आजकल, और विशेषत: राजनीतिक क्षेत्र में, एक संकीर्ण अर्थ चिपकाने की कोशिशें जारी हैं| ‘हिंदू’, अन्य संप्रदायों की भॉंति एक संप्रदाय मात्र है, ऐसा प्रचारित किया जा रहा है| अत:, जो कोई हिंदू की, हिंदू-हित की, या हिंदू-राष्ट्र की बात करता है, उसे सांप्रदायिक और अराष्ट्रीय मानने की प्रवृत्ति दिख रही है| उसे सेक्युलरराजनीति का शत्रु माना जा रहा है| एक अजीब बात यह है कि जो संप्रदायविशेष का विचार कर अपनी नीतियॉं और कार्यक्रम बना रहे हैं, उन्हें सेक्युलरकहा जा रहा है| और जो सब पंथों को समान समझो, राजनीति और राज्यशासन पंथनिरपेक्ष होना चाहिये, ऐसा कहते हैं, उन्हें सांप्रदायिक कह कर उनकी निंदा की जा रही है| वैचारिक व्यभिचार का ऐसा विचित्र उदाहरण दुनिया में शायद ही, और कहीं मिल पायेगा|
हिंदूहोने का अभिमान इस परिप्रेक्ष्य में, जिनकी १५० वी जयंति, अब अपने देश में मनाई जानेवाली है, उन स्वामी विवेकानंद के विचार क्या थे, यह जानना सचमुच उद्बोधक होगा| हमारे सार्वजनिक जीवन की कई भ्रांतियॉं दूर करने में वे सहायक होंगे|
स्वामीजी कहते हैं, ‘‘हिंदू होने का मुझे अभिमान है| मैं आप का देशवासी हूँ इसका मुझे गर्व है| (Complete works of Vivekanand. vol-3, page 381) हिंदू शब्द सुनते ही, शक्ति का उत्साहवर्धक प्रवाह आपके अंदर जागृत होगा तभी आप सच्चे अर्थ में हिंदू कहने लायक बनते हैं| आपके समाज के लोगों में आपको अनेक कमियॉं देखने को मिलेंगी, किन्तु उनकी रगों में जो हिंदू रक्त है, उस पर ध्यान केन्द्रित करो| गुरु गोविंदसिंह के समान बनो| हिंदू कहते ही सब संकीर्ण झगडे समाप्त होंगे| और जो जो हिंदू है, उसके प्रति सघन प्रेम आपके अंत:करण में उमड पडेगा|’’ (तत्रैव पृ. ३७९)

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siddharam patil photo

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