प्रीतीश नंदी
| Jun 21, 2013, 08:05AM IST
राहुल परिवर्तन का प्रतिनिधित्व नहीं करते, क्योंकि वे कांग्रेसी हैं और गांधी हैं। जबकि मोदी भाजपा नहीं हैं, वे अकेले हैं। वे तमाम बातें जोर-शोर से करते हैं, लेकिन अपने आप को छोड़कर किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।
राहुल परिवर्तन का प्रतिनिधित्व नहीं करते, क्योंकि वे कांग्रेसी हैं और गांधी हैं। जबकि मोदी भाजपा नहीं हैं, वे अकेले हैं। वे तमाम बातें जोर-शोर से करते हैं, लेकिन अपने आप को छोड़कर किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि नरेंद्र मोदी इन दिनों बहुत लोकप्रिय
हैं। वे हर किसी के नायक नहीं हो सकते हैं। लेकिन, युवाओं, शहरी भारत और
विदेशों में रहने वाले भारतीयों के बीच उनकी लोकप्रियता अभी हाल के महीनों
में काफी बढ़ी है।
सबसे अंत में उनके समर्थन में आगे आने वाले मीडिया पंडितों को विश्वास
है कि वे अगले प्रधानमंत्री होंगे। वर्ष २क्क्२ के एक अछूत की तुलना में
वे २क्१३ के स्टार हैं। सच तो यह है कि जैसा कांग्रेस हमें यकीन दिलाना
चाहती है, उन्हें केवल कट्टरपंथी हिंदुओं का समर्थन हासिल नहीं है। इसके
बजाय धर्मनिरपेक्ष, शिक्षित और सफल युवक और महिलाएं उनके साथ हैं। वे मोदी
के पीछे इसलिए नहीं चल रहे हैं कि वे गुजराती अस्मिता (जो वे अक्सर कहते
हैं।) की बात करते हैं या हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का आकर्षक मिश्रण
(कभी-कभार) पेश करते हैं या वे घोर मुस्लिम विरोधी या पाकिस्तानी या किसी
भी बात के विरोधी हैं।वे उनको समर्थन इसलिए देते हैं, क्योंकि वे एक नए
भारत का वादा कर रहे हैं।
यह नया भारत कैसा है, कोई भी अच्छी तरह नहीं जानता। यह एक विचित्र
साम्राज्य है, जिसे मोदी ने तैयार किया है। राजीव आखिरी गांधी थे,
जिन्होंने किंग आर्थर के केमलॉट(एक खूबसूरत साम्राज्य) का सपना कैनेडी की
पुरानी शानदार परंपरा के समान बेचा था। दूसरी तरफ मोदी सीधी-सादी बातों की
पेशकश करते हैं- अच्छी सड़कें, शानदार फ्लाईओवर, कभी न बंद होने वाली
बिजली, एक ऐसा समाज जिसमें भ्रष्टाचार का अस्तित्व तो हो, लेकिन वह आज के
जितना भयावह और आत्मा को आहत करने वाला न हो और ऐसे शहर हों जो बगैर किसी
बाधा के आगे बढ़ सकें। वे उन बातों के लिए ऊंची आवाज में शोर नहीं मचाते
हैं, जो वे कर नहीं सकते।
इसलिए वे विश्वसनीय लगते हैं। वे चाहते हैं, कारोबार बढ़े, नई
नौकरियों का सृजन हो और देश में डॉलर आएं। वे ऐसे भारत का विचार पेश नहीं
कर रहे हैं, जो पूरी तरह समावेशी हो। लेकिन हमारी राजनीति में कौन ऐसा कर
रहा है? इसके बदले वे एक नए देश और बिजनेस के अनुकूल वातावरण का सपना ऑफर
कर रहे हैं। इस कारण युवा उनके साथ हैं, भले ही वे ऐसे व्यक्ति नहीं हैं
जिसे मुख्यधारा का भारत पसंद करे। यह युवाओं का उत्साह है जिन्होंने मोदी
नामक दु:स्वप्न को केमलॉट के सपने में तब्दील कर दिया है।
इसका कारण सामान्य है। आज के युवा इतिहास से चिपके हुए नहीं हैं। बीते
साल की बात छोड़ दीजिए, वे तो पिछले हफ्ते की खबर से भी बेफिक्र रहते हैं
और मोदी का जनसंहार तो एक दशक से ज्यादा पुराना है। यहां तक कि युवा
मुसलमान भी आगे बढ़े हैं और बाकी भारत के समान वे भी नौकरियों, कॅरियर,
पैसा और अवसरों के बारे में सोच रहे हैं। अगर मोदी उन्हें यह सब दे सकते
हैं, उन्हें विशाल भारतीय सपने में शामिल कर सकते हैं, तो वे बीती बातों को
भुलाकर आशा से आगे देखेंगे। कांग्रेस उन्हें धर्मनिरपेक्षता के लॉलीपॉप के
अलावा कुछ नहीं दे सकती है और अब वे खोखले वादों से प्रभावित होने वाले
नहीं हैं। वे जल्दी परिवर्तन चाहते हैं। कोई भी उन्हें यह फौरन उपलब्ध
कराएगा तो वे अतीत को भुला देंगे।
युवाओं को केवल राजनीतिक भुलक्कड़पन ही परिभाषित नहीं करता है। उनकी
पहचान एक नए भारत की खोज है। उन्होंने चुनाव में पहले भी कई बार इसके संबंध
में सुना है। लेकिन चुनाव होते ही भारतीय राजनीति का परंपरागत खेल शुरू हो
जाता है। जाति आधारित आरक्षण। खाप पंचायतों की मिजाजपुर्सी। वोट बैंक की
राजनीति। समाजवादी शोर। जेंडर आधारित भेदभाव। सर्वव्यापी भ्रष्टाचार।
जितना चीजों को बदलने का वादा किया जाता है, वे ज्यों की त्यों रहती
हैं। हिंदुस्तान के सिंहासन पर बैठने का दावा करने वाले कांग्रेस और भाजपा
के साथ एक ही समस्या है : वे यथास्थिति के आधार पर बहुमत पाना चाहते हैं।
और युवा इसके खिलाफ हैं। वे जानते हैं कि यथास्थिति की राजनीति में उनकी
कोई भूमिका नहीं होगी। उनकी एकमात्र आशा परिवर्तन में निहित है और उनके लिए
मोदी उस परिवर्तन की संभावना का प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि राहुल गांधी
नहीं करते हैं।(दरअसल, पिछले सप्ताह मंत्रिमंडल में फेरबदल ने इस बात को
रेखांकित किया है।)
राहुल परिवर्तन का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, क्योंकि वे कांग्रेसी
हैं और गांधी हैं। जबकि मोदी भाजपा नहीं हैं, वे अकेले हैं। वे तमाम तरह की
बातें जोर-शोर से करते हैं, लेकिन वे अपने आप को छोड़कर किसी अन्य के
प्रति जवाबदेह नहीं हैं। इस कारण से वे ऐसे फैसले कर सकते हैं, जो पार्टी
के किसी व्यक्ति के लिए करना मुश्किल होता है, क्योंकि उसे आगे-पीछे खींचने
वाली विभिन्न ताकतों के बीच संतुलन बिठाना पड़ता है। मोदी को संतुलन नहीं
करना पड़ता। वे विद्रोह को सिर उठाने देते हैं और फिर उसे कुचल देते हैं।
युवा इसे कठिन परिस्थिति में निर्णय लेने और कार्रवाई करने की क्षमता
के रूप में देखते हैं। इस कारण मोदी उन्हें आकर्षित करते हैं। वे नए भारत
में जो कुछ देखना चाहते हैं, वह मोदी में है। जल्द फैसलों और निर्णायक नीति
परिवर्तनों के जरिये तेजी से नतीजे हासिल किए जा सकते हैं। अतीत में
झांकने की जरूरत नहीं है। इतिहास को दफनाने और नए भारत को खोजने का समय है।
विडंबना है कि जवाहरलाल नेहरू के वंशज राहुल यह चुनौती नहीं उठा सकते हैं।
एक और विडंबना यह है कि भाजपा जो अब तक हिंदू भारत के गौरव का गान करती
थी, उसे अब एक ऐसा नेता मिल गया है, जो नए, आधुनिक, अतीत को भुलाने और
भविष्य को परिभाषित करने वाली पहचान के आधार पर भारत का अगला प्रधानमंत्री
बनने के लिए अभियान चला रहा है।
क्या नरेंद्र मोदी चुनाव जीतेंगे? मुझे इसका अहसास नहीं है। स्टॉक
मार्केट के समान चुनावी राजनीति का गुणा-भाग भी अस्थिर होता है। लेकिन कई
लोग विश्वास करते हैं(वे सभी भाजपा समर्थक नहीं हैं) कि मोदी ऐसा कर सकते
हैं। परंपरागत गुणा-भाग उनके साथ नहीं है, लेकिन कोई लहर ऐसा कर सकती है।
प्रीतीश नंदी
वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार
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